Chhattisghar Me Dongarghar Kaha Hai
200 छत्तीसगढ़ राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजित डोंगरगढ़ की माँ बमलेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है। आइए आज हम आपको लेकर चलते हैं उन इतिहास के बारे में। माँ बम्बलेश्वरी छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में खूबसूरत हरी भरी शादियों और झील के किनारे विराजती हैं। उन्हें माँ बगलामुखी का रूप माना जाता है। माँ अपने भक्तों को विजय का वरदान देती है। साल के दोनों नवरात्रों में यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमर्ति है और माँ के दर्शन कर को धन्य करते हैं।
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डोंगरगढ़ में जमीन से करीब 2000 फिट की उचाई पर विराजती है माँ बमलेश्वरी माँ की एक झलक पाने के लिए दूर दूर से भक्तों की भक्तों का जत्था माता के इस धाम में पहुंचता है। कोई रोपवे का सहारा लेकर तो कोई पैदल ही चल कर माता के इस धाम में अपने आस्था के फूल चढ़ाने पहुंचता है। मंदिर में प्रवेश करते ही सिंदूरी रंग में सजी माँ बमलेश्वरी का भव्य रूप बर्बस ही भक्तों को अपनी ओर खींच लेता है। [Chhattisghar Me Dongarghar Kaha Hai]
साल के दो नवरात्रों चैत्र और साध्वी नवरात्रों में।
तो यहाँ की छटा देखते ही बनती है। लंबी लंबी कतारों में खड़े भक्त घंटों यहाँ माँ की झलक भर पाने का इंतजार करते हैं। प्राचीन काल में यह स्थानीय कामवती नगर के नाम से विख्यात था। कहते हैं यहाँ के राजा काम से इन बड़े प्रतापी और संगीत कला के प्रेमि जी राजा कामसेन के ऊपर बम्बलेश्वरी माता की विशेष कृपा थी। उनके राज़ दरबार में काम कंदुलन नाम की अति सुन्दर राज़ माधवनल जैसे संगीतकार थे।
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एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने माधव नल को अपने गले का हार दे दिया। माधव नल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए हार उसको पहना दिया। इससे राजा ने अपने आप को अपमानित महसूस किया और गुस्से में आकर मादम नल को राज्य से बाहर निकाल दिया। [Chhattisghar Me Dongarghar Kaha Hai]
इसके बावजूद काम गंधला और माधवलाल छिप छिप कर मिलते रहे।
एक बार माधव नल उज्जैन के राजा विक्रम आदित्य के शरण में गए और उनका मनजीत कर उनसे पुरस्कार स्वरूप काम कंदला को राजा काम सेन से मुक्त कराने की बात कही। राजा विक्रम आदित्य ने दोनों की प्रेम की परीक्षा ली और दोनों को खराब पाकर काम कंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया।
राजा के इनकार करने पर दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया। दोनों वीर योद्धा थे और एक महाकाल का भक्त था तो दूसरा विमला माता का।
दोनों ने अपने अपने ईष्ट देव का आह्वान किया तो एक और से महाकाल और दूसरी ओर से भगवती विमला माँ अपने अपने भक्तों की सहायता करने पहुंचे। युद्ध के दुष्परिणाम को देखते हुए महाकाल ने विमला माता से राजा विक्रमादित्य को क्षमा करने की प्रार्थना की और काम कंधला और माधव नल को मिलवा पे दोनों अंत हो गए।
वहीं विमला माँ आज बमलेश्वरी देवी के रूप में छत्तीसगढ़ वासियों की अधिष्ठात्री देवी है। अतीत के अनेक तथ्यों को अपने गर्व में समेटे ये पहाड़ी अनाधिकाल से जगन जननी माँ बम्बलेश्वरी देवी की सर्वोच्च शाश्वत शक्ति का साक्षी है।
माँ बम्लेश्वरी के आशीर्वाद से भक्तों को शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति मिलती है साथ ही विजय का वरदान मिलता है। मुश्किलों को हर कर माँ अपने भक्तों को मुश्किलों से लड़ने की रास्ता दिखाती है। माँ बमलेश्वरी के दरबार में दोपहर में होने वाली आरती का महत्त्व भी कुछ कम नहीं है। घंटी घड़ियालों के बीच आरती की।
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